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भारत के विलक्षण वीरों में से एक शहीद चंद्रशेखर आज़ाद की जयंती के अवसर पर सादर नमन करते हुए

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अनुज्ञा द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक के सिलसिले में जब मैं उसके कवर के लिये इन दो फोटो पर काम करते हुए अहसास हुआ की फोटो अपने आप में कुछ ब्यान कर रही हैं। हलांकि मैं अपने आपको इस बात से ही रोमांचित व गौरवान्वित महसूस कर रहा था की कम से कम मुझे ‘आजाद’ फोटो पर काम करने का मौका तो मिल रहा है। अचानक ये देखकर मन विचलित होने लगा की ये वो कौन से हाथ हैं जिन्होंने ‘आजाद’ के शरीर से उसकी लुंगी उतारी। गोली लगी थी गोली से लुंगी नहीं उतर सकती थी। मुझे उन लोगों से नफरत होने लगी जो पहनावे से तो भारतीय लग रहे हैं पर ‘आजाद’ के बाल खींच रहे हैं। पुस्तक का नाम अभी इसलिये नहीं बता रहा हुँ क्योंकि पुस्तक की पहली प्रति मैं अपने आदरणीय को देना चाहता हुँ। माता-पिता के बाद ये मेरे लिये इतने आदरणीय हैं कि इनके बगैर मैं कुछ भी नहीं हुँ। हालांकि पुस्तक छपे हुए भी 15 दिन हो गए हैं पर मैं मेरी अपनी वज़हों से मैं उनके पास नहीं जा पा रहा हुँ।

नये मगध में (कविता संग्रह) - राकेशरेणु

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  राकेशरेणु नये मगध में (कविता संग्रह) पुस्तक खरीदने के लिये यहां क्लिक करें जो इस पुस्तक में न छप सका घर जब मिस्त्री ने कहा कि ईंटें कच्ची हैं वे दौड़े-दौड़े गए ईंट भट्टे वाले के पास कहा अच्छी पकी ईंटें दो ताकि मेरे बाद मेरे बच्चों के काम आये घर। जब मिस्त्री ने कहा सीमेंट पुराना है, थोड़ा बेहतर हो वे दौड़े पसीनाए पहुँचे सीमेंट व्यापारी के पास कहा, पैसे लेते हो तो अच्छी चीज दो ताकि घर मजबूत बन सके ताकि मेरे बाद बच्चों के काम आए। धूप में पसीनाए गए वे टाल की दुकान में गोदाम में घूमते रहे अच्छी पकी लकड़ी की तलाश में उन्हें टिकाऊ चौखट-दरवाजे बनाने थे जो पीढ़ियों का साथ दें पीढ़ियों तक इस तरह बना घर। फिर एक दिन वे बड़ी-बड़ी मशीनें लेकर आए कहा, तुम्हारा घर तुम्हारा नहीं है तुम्हारी जमीन तुम्हारी नहीं तुम्हारे परदादा यहाँ के नहीं थे तुम मेरे जैसे नहीं बस्ती में तुम्हारे घर के लिए जगह नहीं और उन्होंने घर ढहा दिया। जिस घर को बनाने में रीत गई पीढ़ियाँ वह घर हमारी आँखों के सामने कराहता गिरा ऐसे जा बैठा जमीन पर जैसे उसका कोई घुटना न हो उसकी जाँघें न हों, एड़ियाँ, उँगलियाँ जैसे रेत में दबा दिए ग

देवदार के तुंग शिखर से – विजय शर्मा

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 देवदार के तुंग शिखर से विजय शर्मा विजय शर्मा की अन्य पस्तकें खरीदने के लिय 200 रुपये में डाक खर्च सहित पुस्तक खरीदने के लिये यहाँ क्लिक करें पुस्तक का शीर्षक: प्रो. सत्य चैतन्य के सौजन्य से! ‘देवदार के तुंग शिखर से’ पुस्तक का यह नाम देने के पीछे कारण है। इस पुस्तक में जितने रचनाकारों पर आलेख हैं वे सब देवदार की तरह हैं, ऊँचे, मजबूत और दीर्घायु। भौतिक रूप से सब साहित्यकार दीर्घायु नहीं हैं, हो भी नहीं सकते हैं। भौतिक शरीर की अपनी सीमा होती है। लेकिन ये दीर्घायु हैं अपनी रचनाओं के बल पर। इसकी रचनाएँ काल की सीमा के परे जाती हैं। सौ-दो सौ साल बाद भी पढ़ी जाती हैं, याद की जाती हैं, चर्चा-विमर्श का केंद्र बनती हैं। देवदार ऊँचाई पर पाया जाने वाला वृक्ष है, ऊँचा, मजबूत और सम्मानजनक। ये साहित्यकार भी ऊँचाई पर स्थित हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी देवदार सीधा-सतर खड़ा रहता है। इस सदाबहार पेड़ की जड़ें अपनी धरती में मजबूती से गहरी धँसी होती हैं। जड़ें धरती की गहराई से अपना जीवन सत्त ग्रहण करती हैं। कम-से-कम पानी की मात्रा से भी जीवन सींचती हैं। तूफ़ान और बाढ़ में भी यह नहीं उखड़ता है। इसे आसानी से नहीं

शमशेर : अभिव्यक्ति की कशमकश

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अस्मिता सिंह की नई पुस्तक डाक खर्च सहित 350 रुपये में शमशेर : अभिव्यक्ति की कशमकश शमशेर की कविता को लेकर एक यह सवाल हमेशा उठता है कि देश और काल के नज़रिये से इस कवि की रचना को समझ पाना कितनी दूर तक सम्भव है। यह सवाल पेचीदा है क्योंकि शमशेर ने अपने तईं कविता के रूप को बाकी चीज़ों के बराबर तरज़ीह दी है। जिस गति के अधीन हम उनकी कविता में प्रवेश करते हैं वहाँ अड़चनें और दिशा-निर्देश एक साथ मिलते हैं। पहली अड़चन मसलन यह है कि वहाँ शब्द-चित्र प्रायः मौजूद होते हैं, जबकि बयान कभी-कभार ही दिखते हैं। उधर शब्द-चित्रों में भी रंगों और रेखाओं का खेल सीमित रखा जाता है क्योंकि शमशेर जो दिखलाते हैं वह जल्द ही पाठक का ध्यान चित्र से हटा देता है और ठोसपन, तरलता, बाँकापन, वैचारिक बारीकी, तथा सौंदर्य भावना में मौजूद हठ की तरफ़ इशारा करता है। आमतौर पर शब्दों का आधार कायम करते हुए शमशेर मनोवस्था का गहरा ज़िक्र करने लगते हैं। लेकिन तभी देश-काल का मसला सामने आ जाता है। यद्यपि सामयिकता से शमशेर कभी छूट नहीं लेते, फिर भी, वह बयान को किंचित सन्देह से देखते हैं। यह पूछना भी वाजिब जान पड़ता है कि बीसवीं सदी के दू

आधी रात का किस्सा गो – शेखर मल्लिक

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  आधी रात का किस्सा गो शेखर मल्लिक का नवीनतम कहानी संग्रह पुस्तक खरीदने के लिये यहां क्लिक करें शेखर मल्लिक की अन्य पुस्तक के लिये “पता नहीं!” जितेन हँस पड़े, “उसने सीधे-सीधे कभी बताया नहीं... जबकि वो इतना स्ट्रेट लड़की थी। उससे ज्यादा तो ये दल के साथी हँसते-हँसते आगाह करते थे, अबे जितेन, मर जाओगे। डायन है वह, इंग्लिश डायन! तुम्हारा दिल निकाल के मैड्रिड भाग जायेगी और तुम इधर मर जाओगे!” अनु का घर आ गया। बेटे को गोद में लिये उतर आयी। जितेन भी कार से बाहर आये, “बिना खाना खाये तुम्हारा बेटा सो गया।” “हाँ अब तो उठाने पर भी नहीं उठेगा।”  अनु ने उनके वापस बैठने से पहले पूछ लिया, “वह अचानक चली गयीं! कब चली गयीं और कैसे गयीं?”  “कहाँ गयी! वो नहीं गयी। यहीं इंडिया में रह गयी।” जितेन कार का दरवाजा पकड़े हुए उसकी ओर मुड़े। “यहीं है!” अनु के चेहरे पर आश्‍चर्य का रोमांच उभर आया।  “हाँ, यहीं है।” “कहाँ?” “मालूम नहीं। कोई कह रहा था कि यहीं कहीं ‘माता जी’ बनके रह गयी है। यहीं किसी आदिवासी गाँव में...” “वे यहाँ से जा न सकीं! शायद आप से सचमुच उनको प्यार था... वे ये जमीन नहीं छोड़ सकीं। चलिये न काका एक दिन उनक

विश्व सिनेमा में स्त्री – विजय शर्मा

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विजय शर्मा की पुस्तक  विश्व सिनेमा में स्त्री विजय शर्मा की अन्य पस्तकें खरीदने के लिय फिल्मों में हमें तरह-तरह की माँ के दर्शन होते हैं। इनमें से कुछ स्त्रियाँ सास भी हैं। 'परमा’ की सास घर की सर्वेसर्वा है, शुरू में वह बहु को फोटोशूट्स की इजाजत दे देती है। मगर जब बहु की स्वायत्ता देखती है तो सहन नहीं कर पाती है और परम्परागत सास की भूमिका में आ जाती है। सास तो 'पाच्र्ड’ में भी है मगर वह अपनी परम्परागत सास की भूमिका का अतिक्रमण करती है बहु को अपने हाथों स्वतन्त्र कर देती है और सामने वाले को यह भी जता देती है कि वह इस स्त्री के साथ बुरा बरताव न करे वरना वह उसे छोड़ेगी नहीं। 'बागवान’ की सास बहुओं के प्रति कोई विशेष भूमिका अदा नहीं करती है। 'द जापानीज वाइफ’ की सास इनसे अलग है। उसकी बहु भी उससे हजारों मील दूर है। शुरू में उसे यह पूरा सम्बन्ध विचित्र लगता है लेकिन अन्तत: वह इसे स्वीकारती है। बहु उसके लिए दूर देश से बुन कर स्वेटर भेजती है तो वह विगलित हो उठती है। मौसी स्नेहमय तथा मियागी के रिश्ते को स्वीकार कर अपनी प्रगतिशीलता का, अपने नारी सुलभ कोमल हृदय का परिचय देती है। संग