भारत के विलक्षण वीरों में से एक शहीद चंद्रशेखर आज़ाद की जयंती के अवसर पर सादर नमन करते हुए










अनुज्ञा द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक के सिलसिले में जब मैं उसके कवर के लिये इन दो फोटो पर काम करते हुए अहसास हुआ की फोटो अपने आप में कुछ ब्यान कर रही हैं। हलांकि मैं अपने आपको इस बात से ही रोमांचित व गौरवान्वित महसूस कर रहा था की कम से कम मुझे ‘आजाद’ फोटो पर काम करने का मौका तो मिल रहा है। अचानक ये देखकर मन विचलित होने लगा की ये वो कौन से हाथ हैं जिन्होंने ‘आजाद’ के शरीर से उसकी लुंगी उतारी। गोली लगी थी गोली से लुंगी नहीं उतर सकती थी। मुझे उन लोगों से नफरत होने लगी जो पहनावे से तो भारतीय लग रहे हैं पर ‘आजाद’ के बाल खींच रहे हैं।
पुस्तक का नाम अभी इसलिये नहीं बता रहा हुँ क्योंकि पुस्तक की पहली प्रति मैं अपने आदरणीय को देना चाहता हुँ। माता-पिता के बाद ये मेरे लिये इतने आदरणीय हैं कि इनके बगैर मैं कुछ भी नहीं हुँ। हालांकि पुस्तक छपे हुए भी 15 दिन हो गए हैं पर मैं मेरी अपनी वज़हों से मैं उनके पास नहीं जा पा रहा हुँ।


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